Saturday, June 20, 2009

इस देश का
लोकतंत्र
गणतंत्र
सभ्यता
संस्कृति
सत्य
धर्म
अहिंषा
सभी
चौराहे
पर
खड़ी
है
लगता
है
दिल्ली
की
आखं
फ़िर
किसी
दगाबाज
से
लड़ी
है

विजय विनीत

Sunday, June 7, 2009

दर्द

अशोक पाण्डेय जी ग्व्यालियर ,दिगम्बर नासवाजी दुबई ,समय जी अलबेलाजी सूरत, नारद मुनीजी गंगानगर ,परमजीत बालीजी ,देवगातिकरजी दिल्ली
संगीताजी बोकारो आप लोगों ने हमारी दिल्ली वाली कविता को सराहा बधाई ब्लॉग की ज्यादा जानकारी नहीं गावं में रहताहूँ ।
आप कुछ इस तरह से जीते हैं
लगता है दर्द बहुत पीते हैं ।
आइनें सा ये बताता चेहरा ,
सारे दिन हादसों में बीते हैं ।
खोयी खोयी सी आखं कहती है ,
आप मंजिल से बहुत पीछे हैं ।
लडखडाती हुई जुबा कहती ,
जुल्म सहते हैं होठ सीते हैं ।
आप कुछ भी न बताएं फ़िर भी ,
कहती सब कुछ ये गजल गीते हैं

विजय विनीत
9415677513