Monday, July 27, 2009

हम मौलिक अधिकार से वंचित दशक पाँच बीतल आजादी
चाल विदेशी बात स्वदेशी लूटें पहिर पहिर के खादी
लंच डिनर में खा गैन इ देश के सगरो बिस्कुट जईसन ।
कई योजना देश में आइल गावं तबो चिरकुट के जईसन । ।
इहाँ उहाँ फैक्ट्री जाल फैक्ट्री क फैलवन ।
बड़ा फायदा यह सबसे बा बड़ा करीने से समझवन । ।
शक्तिनगर से रापटगंज तक धुल धुवा क तनल बा चादर ।
भइल मोहाल साँस लेवल अब जहर रोज बरसावे बादर । ।
महुआ खाई महुआ पीहीं उहऊ छीन ले गयल माफिया
सबसे बड़ा उहई डाकू बा जेके हम समझली डाकिया । ।
अपने मन लिखत -पढ़त बा, बैठ -बैठ शहर बजारे
रोज गाँव लिखय समीक्षा नाहीं आयल गाँव जवारे । ।
पढ़य -लिखय वाले भईया से हाथ जोरी के आज कहीला
कलम हाथ में तोहरे बांटे मत मौलिक अधिकार के छीना। ।
लिखा सोन में जहर बहत बा सोनभद्र बा कालाहांडी
सबसे बड़ा इंहा अचरज बा पिघल रहल बा इंहा पहाडी । ।
पग पग पर ये घाटी के माटी में बाटे करुण कहानी
मत डाला के खून के भुला कैसे भइले बलिदानी । ।
जोर जुलुम के देख देख के धरती भी डोल उठल बा।
अइसन सर से पानी गुजरल के नीरव भी बोल उठल बा । ।
आवा आज शपथ लेंही जहर होईं सोन पानी । ।
अइसन हम ललकार मचाई घर घर गुजें जनवाणी


इस कविता की रचना १९९७ में सोन को बचाने के लिए श्री नरेंद्र नीरव द्वारा आयोजित जनवाणी कार्यक्रम में लिखा गया था

विजय विनीत