हम मौलिक अधिकार से वंचित दशक पाँच बीतल आजादी ।
चाल विदेशी बात स्वदेशी लूटें पहिर पहिर के खादी । ।
लंच डिनर में खा गैन इ देश के सगरो बिस्कुट जईसन ।
कई योजना देश में आइल गावं तबो चिरकुट के जईसन । ।
इहाँ उहाँ फैक्ट्री जाल फैक्ट्री क फैलवन ।
बड़ा फायदा यह सबसे बा बड़ा करीने से समझवन । ।
शक्तिनगर से रापटगंज तक धुल धुवा क तनल बा चादर ।
भइल मोहाल साँस लेवल अब जहर रोज बरसावे बादर । ।
महुआ खाई महुआ पीहीं उहऊ छीन ले गयल माफिया ।
सबसे बड़ा उहई डाकू बा जेके हम समझली डाकिया । ।
अपने मन क लिखत -पढ़त बा, बैठ -बैठ उ शहर बजारे ।
रोज गाँव क लिखय समीक्षा नाहीं आयल गाँव जवारे । ।
पढ़य -लिखय वाले भईया से हाथ जोरी के आज कहीला।
कलम हाथ में तोहरे बांटे मत मौलिक अधिकार के छीना। ।
लिखा सोन में जहर बहत बा सोनभद्र बा कालाहांडी ।
सबसे बड़ा इंहा अचरज बा पिघल रहल बा इंहा पहाडी । ।
पग पग पर ये घाटी के माटी में बाटे करुण कहानी ।
मत डाला के खून के भुला कैसे उ भइले बलिदानी । ।
जोर जुलुम के देख देख के इ धरती भी डोल उठल बा।
अइसन सर से पानी गुजरल के नीरव भी बोल उठल बा । ।
आवा आज शपथ इ लेंही जहर न होईं सोन क पानी । ।
अइसन हम ललकार मचाई घर घर गुजें इ जनवाणी ॥
इस कविता की रचना १९९७ में सोन को बचाने के लिए श्री नरेंद्र नीरव द्वारा आयोजित जनवाणी कार्यक्रम में लिखा गया था ।
विजय विनीत
Monday, July 27, 2009
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